बुधवार, 22 अगस्त 2012

पवित्र ये गंगा

देखने में ये मनोरम है 
बहुबिम्ब दिखाती सचित्र है गंगा .
दादा के दादी की, नाना के नानी की 
नानी की भी रही पित्र है गंगा .
कोई कुगामी भले रिपु माने 
परन्तु सभी की ये मित्र है गंगा .
पाहन पावन और अपावन को 
करती है पवित्र  ये गंगा ..
सुर्यसुता को समेटी  है ये
सुखधाम की श्री अरु सोम है गंगा .
वामन रूप में विष्णुबली  की 
कथा की गवाह ये व्योम है गंगा .
है अरुणा, वरुणा, करुणा यह 
तेज की पुंज है, ओम है गंगा .
आयुष बाँटती है दिन रात 
सदा विषसार विलोम है गंगा..


रविवार, 1 जुलाई 2012

विलोई थी गंगा

राम सिया संग शेष गए जब 
थे बन में तब रोई थी गंगा .
केवट के कर में उठ के पग 
राम के पावन धोई थी गंगा .
भोगना कर्म का भोग सभी को 
बता भव भाव में खोई थी गंगा .
कोई बचा है नहीं इससे जतला
 कर छाछ विलोई थी गंगा 

मंगलवार, 26 जून 2012

पधारी हो गंगा


दीन दुखी बड़े सभ्य सुखी 
सच में सबकी महतारी हो गंगा . 
नेक जनों को तो तारी ही हो बड़े
 पातकियों को भी तारी हो गंगा .
है इतिहास असंख्य जनों का 
तू जीवन जन्म सुधारी हो गंगा .
औ '  भवलोक के शोक मिटाने 
के हेतु धरा पे पधारी हो गंगा

बुधवार, 20 जून 2012

ब्रह्म प्रताप है गंगा ..

है सुनती सबकी गुनती 
मन में चुनती ये अमाप है गंगा .
आयी भगीरथ के श्रम से 
इस हेतु भगीरथ जाप  है गंगा .
दीनदुखी पर धर्ममुखी 
उनके लिए माई औ बाप है गंगा .
देव भी प्रार्थना जाकी करे 
वह देवि है , ब्रह्म प्रताप है गंगा ..

सोमवार, 18 जून 2012

द्रव्य है गंगा ..

कान में नाम पड़े मुकुती
मिलती जिससे वह श्रव्य है गंगा . 
भान कराती है धर्म अधर्म का 
भावमयी वह भव्य है गंगा .
मान सदा बढ़ जाता है पित्र का 
बूंद के रूप में कव्य है गंगा .
शान बघारते देव सभी नित ,
ज्ञान , दयामयी  , द्रव्य है गंगा ..

रविवार, 17 जून 2012

विभास है गंगा

विश्व विमोहिनि ,राक्षस द्रोहिनि ,
वैभव ,वाणी विलास है गंगा .
बिंदु से सिन्धु है मोहित इन्दु है 
हिन्द सुखी की विकास है गंगा .
माता है ,दाता है ,भाग्य विधाता है 
लोगन का ये विश्वास  है गंगा .
जीवन ज्योति कभी नहीं सोती है 
विष्णुपदी है विभास है गंगा।.

मंगलवार, 20 मार्च 2012

कबीर है गंगा ..

है  जनरूप ये  भागीरथी  इसे 
मानिए  आप  शरीर  है  गंगा . 
बाँटती  ही  रहती  है  निरंतर 
अमृत  बूंद  औ  क्षीर  है गंगा . 
भाव से आप बुलाइये आएगी 
भक्त  लिए  ही  अधीर है गंगा . 
ठाँव - कुठाँव  नहीं     लखती 
रखती पत को ये कबीर है   गंगा .