सोमवार, 16 जनवरी 2012

सुधारत गंगा ।

ताप मिटावत शाप मिटावत
मानव योनि सुधारत गंगा
पाप मिटावत थाप गिनावत
धावत आवत भारत गंगा
नाद निनाद सुने मिट जात
विषाद ,ये मन्त्र उचारत गंगा
पापी जापी , प्रतापी है कौन
सदा दिन रात विचारत गंगा

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