बुधवार, 18 जनवरी 2012

अमृत धार है गंगा

सारी धरा  जिस पे बलि जा रही
उत्तम    एक   विचार   है   गंगा।
बाधक  रोग  वियाधि की है सदा
बूंद    में   अमृत  धार  है   गंगा।
आयुष    देती  निरंतर ही, संसार
असार     की     सार    है   गंगा।
राजा औ रंक का भेद न जानती
मुक्ति   विमुक्ति   अधार  है  गंगा।

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