गंगा : डॉ.उमाशंकर चतुर्वेदी 'कंचन'
गंगा
मंगलवार, 14 दिसंबर 2010
गंगा स्तवन
भागीरथी तुम मन्दाकिनी , खुद
ज्ञानवती
हो प्रणाम है गंगा।
योगी यती नित ध्यावत गावत,
रूपवती हो प्रणाम है गंगा।
शान्तनु जाया कहे सब भूपर,
तेजवती हो प्रणाम है गंगा।
माता हो नन्दिनी स्वर्ग प्रदायिनी,
मोछ्वती
हो प्रणाम है गंगा।
1 टिप्पणी:
देवेन्द्र पाण्डेय
14 दिसंबर 2010 को 5:48 am बजे
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