शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

भारत ही नहीं सारे धरा के


लिए यह वैभव हृष्टि है गंगा ।


भारत के लिए ब्रह्मद्रवी , खुद


भारत है , यह वृष्टि है गंगा ।


भारत में हैं जो आरत के वश


ताके लिए यह दृष्टि है गंगा।


धारत भारत , भारत धारत ,


एक अनोखी ये सृष्टि है गंगा ॥

मंगलवार, 5 अप्रैल 2011


कीजिए बात तो बात करेगी


लगेगी सदा यह व्यक्ति है गंगा।


भीगिए आप भिगायेगी ये नित


भावना है यह भक्ति है गंगा।


कीजिए प्यार दुलार इसे


अनुराग भरी अनुरक्ति है गंगा ।


पीजिये ले अंजुरी -अंजुरी


यह जीवन दायिनी शक्ति है गंगा ॥


रविवार, 27 फ़रवरी 2011

देवमुनी भी न जान सके
सच पूछिये तो यह राज है गंगा ।
धर्म धुरीण धरा पर जो
उनके मुख की यह लाज है गंगा ।
वायु हिलोर भरे जब भूमि पे
लागे वहीं यह साज है गंगा ।
भारत भारत है सच में
यह भारत का सिरताज है गंगा ।
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पाप परात दिखात सदा
बस नाम के लेन से पावनि गंगा ।
भोले भभूत रमा विहँसे
लखि के मन से मनभावनी गंगा ।
रोज करे अभिषेक धरा का
लगे नित ही यह सावनि गंगा ।
हाड़ पड़े जिनके तन के
उनको सुरधाम पठावनि गंगा ।

शनिवार, 26 फ़रवरी 2011


छूवत ना यमदूत उन्हें

जिनके मुख बूंद विराजत गंगा।

छूने की कोशिश जो करते

हटते यह देख कि छाजत गंगा ।

पापी पुराने भले रहते पर

मुक्ति के द्वार ये साजत गंगा ।

पाप की कालिख धोने की खातिर

धर्म के तत्त्व से माजत गंगा ॥

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011


गं से गणेश पुजावत आदि हैं

अक्षर आदि तुम्हारा है गंगा ।

गाय में तैतिस कोटि बसे सुर

गा वह रूप तुम्हारा है गंगा ।

विघ्न विनाशिनि औ जग पालिनि

पावन नीर तुम्हारा है गंगा

तेरे बसे से जो भूमि है स्वर्ग समान

वो भारत प्यारा है गंगा ॥

गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011


दूर करें सब विघ्न गणेशजी

ध्यान तुम्हीं दिलावावो हे गंगा ।

प्रेरणा के संग काव्य में शक्ति दो

छंद मुझे लिखवावो हे गंगा ।

मानव जीवन सार्थक मुक्ति हो

मार्ग मुझे वो दिखावो हे गंगा ।

लोकोपकार की बात करूँ अस

पुण्य का फूल खिलावो हे गंगा ॥

* * *

मातु पिता कुल तार सकूँ तुम

ऎसी मुझे अभिव्यक्ति दे गंगा ।

भावमयी सद्भाव की भूमि दो

भूलूं नहीं वह भक्ति दे गंगा ।

भारत वर्ष में जन्म हूँ पाया तो

भारत में अनुरक्ति दे गंगा ।

अर्थ हो धर्म हो काम हो मोक्ष हो

सर्व समर्थ हों शक्ति दे गंगा ॥

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011


नाम तिहारो असंख्य अनंत

कहो किस भांति गिनाऊंगा गंगा ।

है इतना ही जो याद मुझे

उसको दोहरा के सुनाऊंगा गंगा ।

जो मुझको विसरा तुम दी तो

बताओ कहाँ फिर जाऊंगा गंगा ।

दूर रहूँ मजबूर रहूँ हर

हाल में मातु बुलाऊंगा गंगा ॥

* * *

पाप करूँ मैं न दूर से देखूं भी

पाप से मोहे विरक्ति दे गंगा ।

ताप हरूं सभी दीन जनों के

करूँ उपकार वो भक्ति दे गंगा ।

आप में भूला नहीं रहूँ , राष्ट्र के

काज करूँ अनुरक्ति दे गंगा ।

बाप औ मई सुने सुरधाम से

काव्य के छंद में शक्ति दे गंगा ॥

बुधवार, 2 फ़रवरी 2011


नाम तुम्हारा अनेक शिवा ,

शिवदा, कहता कोई वारिणि गंगा ।

धाम तुम्हारा किनारा लगे , तुम

ताप मिटाती हो तारिणि गंगा ।

वाम कभी ग्रहगोचर हों तो

कुभाव की हो तुम हारिणि गंगा ।

काज बने जन , जीव या जंतु के ,

कारक हो तुम कारिणि गंगा ॥

शास्त्र पुराण सभी कहते

तुम धर्म हो , धर्म कपाट हो गंगा ।

साधना तो कभी मैंने किया नहीं

पापों की तू बस काट हो गंगा ।

आतमा त्यागे कभी यह चोला तो

आँखों में विष्णु विराट हो गंगा ।

एक निवेदन है तुमसे बस

तेरी ही गोद हो घाट हो गंगा ॥

मानव योनि मिले जो कभी

मतिमान बनूँ कविता संग गंगा ।

ब्राह्मण के घर आऊं कभी

विद्वान बनूँ पविता संग गंगा ।

भाग्य की लेख खडी हो लिखाना

तुम्हीं बनना भविता मम गंगा ।

जीवन साथी जो देना तो देना

मुझे फिर से सविता संग गंगा ॥

शुक्रवार, 28 जनवरी 2011


अद्भुत रूप अमंगल नाशिनि,

आदि अनंत अनूपा है गंगा ।

भूमि विहारिणि कल्मषहारिणि ,

देवता है, सूरभूपा है गंगा ।

ब्रह्मद्रवी सब जानते हैं पर

सत्य में ब्रह्मस्वरूपा है गंगा ।

देती क्षुधा को असीमित तृप्ति

सुभक्तजनों की अपूपा है गंगा ॥

मंगलवार, 25 जनवरी 2011


पाप की नाशिनि,ताप विनाशिनि,

वारि निवासिनि दानी है गंगा ।

शीश निवासिनि औ मृदुहासिनि

काशी सुहासिनि बानी है गंगा ।

भाव प्रकाशिनि,त्रासद नासिनि,

औ अनुशासिनि , मानी है गंगा ।

काव्य सुभासिनि ,ज्ञान विकासिनि,

एक अनूठी कहानी है गंगा ॥

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

मातु तुम्हारी अनेक कथा

कहता कोई शैलसुता तुम्हें गंगा

ब्रह्मकुमारी , सुकृष्णसुता

कोई भागीरथी दुहिता तुम्हें गंगा ।

विष्णुपदी कोई जह्नुजा रूप

कोई सुर की सरिता तुम्हें गंगा ।

राधा श्रीकृष्ण कपोल के स्वेद से

जायी हुई कविता तुम्हें गंगा ॥

भक्तिमयी , शिवशक्तिमयी ,

अनुरक्तिमयी , जलधारिणी गंगा ।

योग प्रकाशिनि, रोग विनाशिनी ,

भावमयी , जगतारिणि गंगा

स्वर्ग विभासिनी हो कलुनाशिनी

.शंकर शीश विहारिणि गंगा ।

ध्यान से गान से पान नहान से

सर्वदा ही सुखकारिणि गंगा ॥

शनिवार, 15 जनवरी 2011


शंकरी , भेषज रूपा कहे

विषहंत्री कहे शिवदा तुम्हें गंगा ।

मंगला, दक्षा , कहे रेवती

बृहती, सुवृषा, वरदा तुम्हें गंगा ।

मन्दाकिनी , जग जाह्नवी जाने

बखाने शिवा, क्षणदा तुम्हें गंगा ।

देवनदी कोई देवधुनी

कोई हेमवती, ननदा , तुम्हें गंगा ॥

गुरुवार, 13 जनवरी 2011


गोमुख नीचे जहाँ मिलती गति

विष्णुप्रयाग, प्रणाम है गंगा ।

कूजित है कलनाद जहाँ

वह कर्णप्रयाग, प्रणाम है गंगा ।

नेह से तू नहलाती धरा जहँ

नन्दप्रयाग, प्रणाम है गंगा ।

रूप जहाँ बहुरुप लगे वह

देवप्रयाग, प्रणाम है गंगा ।।

सोमवार, 10 जनवरी 2011


हे अमरापगे , माते हरीतिमा,

श्यामला रूप , प्रणाम है गंगा ।

हे सुखराशिनी , माते समुन्नता ,

निर्मल रूप , प्रणाम है गंगा ।

व्योम निवासिनि , हे अघनाशिनि ,

हे नदी भूप , प्रणाम है गंगा ।

हे समुदारा , मुदा , अतुला ,

कमला बहुरूप , प्रणाम है गंगा ॥

बुधवार, 5 जनवरी 2011

भूमा औ भूमिका भोगवती,
उद्धारिणी अत्ता प्रणाम है गंगा ।
उस्रा वसुंधरा तग्या वितन्वी,
महा गुणवत्ता प्रणाम है गंगा ।
भद्रा हिमाद्रिजा हंसपदी ,
जननी सुरसत्ता प्रणाम है गंगा ।
तू मिषती घृतधारा मधुस्रवा,
पृश्नी अभिद्धा प्रणाम है गंगा ।।