बुधवार, 18 जनवरी 2012

अमृत धार है गंगा

सारी धरा  जिस पे बलि जा रही
उत्तम    एक   विचार   है   गंगा।
बाधक  रोग  वियाधि की है सदा
बूंद    में   अमृत  धार  है   गंगा।
आयुष    देती  निरंतर ही, संसार
असार     की     सार    है   गंगा।
राजा औ रंक का भेद न जानती
मुक्ति   विमुक्ति   अधार  है  गंगा।

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

मनोहारिणी गंगा

आशिष      देती     रही       है     सदा
अगरा - अगरा   अभिसारिणी गंगा ।
मानुष     और       मनुस्मृति       की
गरिमा   रखती   मनोहारिणी गंगा ।
बालक    वृध्द    युवा    नहीं   देखती
भाव     प्रवाह      विहारिणी    गंगा ।
शाश्वत       शुध्द      स्वरूप      लिए
सुख खान बनी   कलुहारिणी गंगा ॥

सोमवार, 16 जनवरी 2012

सुधारत गंगा ।

ताप मिटावत शाप मिटावत
मानव योनि सुधारत गंगा
पाप मिटावत थाप गिनावत
धावत आवत भारत गंगा
नाद निनाद सुने मिट जात
विषाद ,ये मन्त्र उचारत गंगा
पापी जापी , प्रतापी है कौन
सदा दिन रात विचारत गंगा

बुधवार, 11 जनवरी 2012

सीप है गंगा ॥

जो     कि    बुझाए    बुझे   न   कभी 
 वह    पावन   जीवन   दीप  है  गंगा । 
बाँटती      है      दिन       रात    कृपा 
कभी   रीती  नहीं   वो महीप है गंगा । 
दूर      कहीं      बहती      है    परन्तु
 ये   नाम   के  रूप   समीप  है गंगा । 
है     जलराशि       महाधन     राशि 
की   मोती  भरी  यह  सीप है गंगा

मंगलवार, 10 जनवरी 2012

विधान है गंगा ।


स्वर्ग  से  आई   हुई    भुविलोक में
अद्भुत   ब्रह्म    विधान    है  गंगा ।
स्वर्ग   जो     जाना    हैं   चाह   रहे
उनके लिए  दिव्य विमान है गंगा ।
स्वर्ग   से   सागर     मध्य    विछी
जलरूप  में  एक    वितान है गंगा ।
स्वर्ग   तो   स्वर्ग   धरा  तो   धरा
दिन  रात  के  मध्य विहान है गंगा

सोमवार, 9 जनवरी 2012

डोर है गंगा ।

देव   मुनी    नर    नाग    यती
सबके लिए धर्म की डोर है गंगा । 
 
सूर्यसुता   यदि   साँवली  तो यह
 
 पावन    निर्मल   गोर    है गंगा । 
 
धर्म आराधक साधक की ध्वनि
 
को  सुन  के ही  बिभोर  है  गंगा ।
 
सूक्ति है  भुक्ति है युक्ति है मुक्ति है
मुक्ति  की  वाचक  शोर  है गंगा ॥