बुधवार, 11 जनवरी 2012

सीप है गंगा ॥

जो     कि    बुझाए    बुझे   न   कभी 
 वह    पावन   जीवन   दीप  है  गंगा । 
बाँटती      है      दिन       रात    कृपा 
कभी   रीती  नहीं   वो महीप है गंगा । 
दूर      कहीं      बहती      है    परन्तु
 ये   नाम   के  रूप   समीप  है गंगा । 
है     जलराशि       महाधन     राशि 
की   मोती  भरी  यह  सीप है गंगा

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