ताप मिटावत शाप मिटावत
मानव योनि सुधारत गंगा ।
पाप मिटावत थाप गिनावत
धावत आवत भारत गंगा ।
नाद निनाद सुने मिट जात
विषाद ,ये मन्त्र उचारत गंगा ।
पापी औ जापी , प्रतापी है कौन
सदा दिन रात विचारत गंगा ॥
मानव योनि सुधारत गंगा ।
पाप मिटावत थाप गिनावत
धावत आवत भारत गंगा ।
नाद निनाद सुने मिट जात
विषाद ,ये मन्त्र उचारत गंगा ।
पापी औ जापी , प्रतापी है कौन
सदा दिन रात विचारत गंगा ॥
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