देव मुनी नर नाग यती
सबके लिए धर्म की डोर है गंगा ।
सबके लिए धर्म की डोर है गंगा ।
सूर्यसुता यदि साँवली तो यह
पावन निर्मल गोर है गंगा ।
धर्म आराधक साधक की ध्वनि
को सुन के ही बिभोर है गंगा ।
सूक्ति है भुक्ति है युक्ति है मुक्ति है
मुक्ति की वाचक शोर है गंगा ॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें