सोमवार, 9 जनवरी 2012

डोर है गंगा ।

देव   मुनी    नर    नाग    यती
सबके लिए धर्म की डोर है गंगा । 
 
सूर्यसुता   यदि   साँवली  तो यह
 
 पावन    निर्मल   गोर    है गंगा । 
 
धर्म आराधक साधक की ध्वनि
 
को  सुन  के ही  बिभोर  है  गंगा ।
 
सूक्ति है  भुक्ति है युक्ति है मुक्ति है
मुक्ति  की  वाचक  शोर  है गंगा ॥

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें