मंगलवार, 20 मार्च 2012

कबीर है गंगा ..

है  जनरूप ये  भागीरथी  इसे 
मानिए  आप  शरीर  है  गंगा . 
बाँटती  ही  रहती  है  निरंतर 
अमृत  बूंद  औ  क्षीर  है गंगा . 
भाव से आप बुलाइये आएगी 
भक्त  लिए  ही  अधीर है गंगा . 
ठाँव - कुठाँव  नहीं     लखती 
रखती पत को ये कबीर है   गंगा .

शनिवार, 17 मार्च 2012

भगीरथ गंगा .

कैसे कहूँ कितना महनीय है 
एक तपी की तू कीरत गंगा . 
राग विराग तियाग भू भाग 
दिखात निरंतर श्री रथ गंगा . 
तू जिस गाँव गली से चली 
वे हुए जग पावन तीरथ गंगा . 
लाके तुम्हें जग धन्य किये 
खुद  धन्य  हुए हैं भगीरथ गंगा .
 

बुधवार, 14 मार्च 2012

प्रकाश है गंगा

राजत  भू   पे , पताल विराजत 
ऊपर    देखो    अकाश  है   गंगा 
छूकर     देखो   सुशीतल  लागत 
लागत   ये    मृदुहास   है   गंगा 
शृंग   से  नीचे    चली  तो  चली 
चलती ही गई ये विकास है गंगा 
पातक नाशिनि , पाप विनाशिनि
पावन    पुंज , प्रकाश  है   गंगा