बुधवार, 14 मार्च 2012

प्रकाश है गंगा

राजत  भू   पे , पताल विराजत 
ऊपर    देखो    अकाश  है   गंगा 
छूकर     देखो   सुशीतल  लागत 
लागत   ये    मृदुहास   है   गंगा 
शृंग   से  नीचे    चली  तो  चली 
चलती ही गई ये विकास है गंगा 
पातक नाशिनि , पाप विनाशिनि
पावन    पुंज , प्रकाश  है   गंगा 

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