नाम तिहारो असंख्य अनंत
कहो किस भांति गिनाऊंगा गंगा ।
है इतना ही जो याद मुझे
उसको दोहरा के सुनाऊंगा गंगा ।
जो मुझको विसरा तुम दी तो
बताओ कहाँ फिर जाऊंगा गंगा ।
दूर रहूँ मजबूर रहूँ हर
हाल में मातु बुलाऊंगा गंगा ॥
* * *
पाप करूँ मैं न दूर से देखूं भी
पाप से मोहे विरक्ति दे गंगा ।
ताप हरूं सभी दीन जनों के
करूँ उपकार वो भक्ति दे गंगा ।
आप में भूला नहीं रहूँ , राष्ट्र के
काज करूँ अनुरक्ति दे गंगा ।
बाप औ मई सुने सुरधाम से
काव्य के छंद में शक्ति दे गंगा ॥
ganga ki shakti aparamapar hai.
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