गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011


नाम तिहारो असंख्य अनंत

कहो किस भांति गिनाऊंगा गंगा ।

है इतना ही जो याद मुझे

उसको दोहरा के सुनाऊंगा गंगा ।

जो मुझको विसरा तुम दी तो

बताओ कहाँ फिर जाऊंगा गंगा ।

दूर रहूँ मजबूर रहूँ हर

हाल में मातु बुलाऊंगा गंगा ॥

* * *

पाप करूँ मैं न दूर से देखूं भी

पाप से मोहे विरक्ति दे गंगा ।

ताप हरूं सभी दीन जनों के

करूँ उपकार वो भक्ति दे गंगा ।

आप में भूला नहीं रहूँ , राष्ट्र के

काज करूँ अनुरक्ति दे गंगा ।

बाप औ मई सुने सुरधाम से

काव्य के छंद में शक्ति दे गंगा ॥

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