बुधवार, 2 फ़रवरी 2011


नाम तुम्हारा अनेक शिवा ,

शिवदा, कहता कोई वारिणि गंगा ।

धाम तुम्हारा किनारा लगे , तुम

ताप मिटाती हो तारिणि गंगा ।

वाम कभी ग्रहगोचर हों तो

कुभाव की हो तुम हारिणि गंगा ।

काज बने जन , जीव या जंतु के ,

कारक हो तुम कारिणि गंगा ॥

शास्त्र पुराण सभी कहते

तुम धर्म हो , धर्म कपाट हो गंगा ।

साधना तो कभी मैंने किया नहीं

पापों की तू बस काट हो गंगा ।

आतमा त्यागे कभी यह चोला तो

आँखों में विष्णु विराट हो गंगा ।

एक निवेदन है तुमसे बस

तेरी ही गोद हो घाट हो गंगा ॥

मानव योनि मिले जो कभी

मतिमान बनूँ कविता संग गंगा ।

ब्राह्मण के घर आऊं कभी

विद्वान बनूँ पविता संग गंगा ।

भाग्य की लेख खडी हो लिखाना

तुम्हीं बनना भविता मम गंगा ।

जीवन साथी जो देना तो देना

मुझे फिर से सविता संग गंगा ॥

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