नाम तुम्हारा अनेक शिवा ,
शिवदा, कहता कोई वारिणि गंगा ।
धाम तुम्हारा किनारा लगे , तुम
ताप मिटाती हो तारिणि गंगा ।
वाम कभी ग्रहगोचर हों तो
कुभाव की हो तुम हारिणि गंगा ।
काज बने जन , जीव या जंतु के ,
कारक हो तुम कारिणि गंगा ॥
शास्त्र पुराण सभी कहते
तुम धर्म हो , धर्म कपाट हो गंगा ।
साधना तो कभी मैंने किया नहीं
पापों की तू बस काट हो गंगा ।
आतमा त्यागे कभी यह चोला तो
आँखों में विष्णु विराट हो गंगा ।
एक निवेदन है तुमसे बस
तेरी ही गोद हो घाट हो गंगा ॥
मानव योनि मिले जो कभी
मतिमान बनूँ कविता संग गंगा ।
ब्राह्मण के घर आऊं कभी
विद्वान बनूँ पविता संग गंगा ।
भाग्य की लेख खडी हो लिखाना
तुम्हीं बनना भविता मम गंगा ।
जीवन साथी जो देना तो देना
मुझे फिर से सविता संग गंगा ॥
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