शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

मातु तुम्हारी अनेक कथा

कहता कोई शैलसुता तुम्हें गंगा

ब्रह्मकुमारी , सुकृष्णसुता

कोई भागीरथी दुहिता तुम्हें गंगा ।

विष्णुपदी कोई जह्नुजा रूप

कोई सुर की सरिता तुम्हें गंगा ।

राधा श्रीकृष्ण कपोल के स्वेद से

जायी हुई कविता तुम्हें गंगा ॥

भक्तिमयी , शिवशक्तिमयी ,

अनुरक्तिमयी , जलधारिणी गंगा ।

योग प्रकाशिनि, रोग विनाशिनी ,

भावमयी , जगतारिणि गंगा

स्वर्ग विभासिनी हो कलुनाशिनी

.शंकर शीश विहारिणि गंगा ।

ध्यान से गान से पान नहान से

सर्वदा ही सुखकारिणि गंगा ॥

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