मातु तुम्हारी अनेक कथा
कहता कोई शैलसुता तुम्हें गंगा ।
ब्रह्मकुमारी , सुकृष्णसुता
कोई भागीरथी दुहिता तुम्हें गंगा ।
विष्णुपदी कोई जह्नुजा रूप
कोई सुर की सरिता तुम्हें गंगा ।
राधा श्रीकृष्ण कपोल के स्वेद से
जायी हुई कविता तुम्हें गंगा ॥
भक्तिमयी , शिवशक्तिमयी ,
अनुरक्तिमयी , जलधारिणी गंगा ।
योग प्रकाशिनि, रोग विनाशिनी ,
भावमयी , जगतारिणि गंगा ।
स्वर्ग विभासिनी हो कलुनाशिनी
.शंकर शीश विहारिणि गंगा ।
ध्यान से गान से पान नहान से
सर्वदा ही सुखकारिणि गंगा ॥
गंगा स्तुति बहुत अच्छी लगी| धन्यवाद|
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