रविवार, 1 जुलाई 2012

विलोई थी गंगा

राम सिया संग शेष गए जब 
थे बन में तब रोई थी गंगा .
केवट के कर में उठ के पग 
राम के पावन धोई थी गंगा .
भोगना कर्म का भोग सभी को 
बता भव भाव में खोई थी गंगा .
कोई बचा है नहीं इससे जतला
 कर छाछ विलोई थी गंगा 

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