गंगा : डॉ.उमाशंकर चतुर्वेदी 'कंचन'
गंगा
रविवार, 1 जुलाई 2012
विलोई थी गंगा
राम सिया संग शेष गए जब
थे बन में तब रोई थी गंगा .
केवट के कर में उठ के पग
राम के पावन धोई थी गंगा .
भोगना कर्म का भोग सभी को
बता भव भाव में खोई थी गंगा .
कोई बचा है नहीं इससे जतला
कर छाछ विलोई थी गंगा
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