कान में नाम पड़े मुकुती 
मिलती जिससे वह श्रव्य है गंगा . 
भान कराती है धर्म अधर्म का 
भावमयी वह भव्य है गंगा .
मान सदा बढ़ जाता है पित्र का 
बूंद के रूप में कव्य है गंगा .
शान बघारते देव सभी नित ,
ज्ञान , दयामयी  , द्रव्य है गंगा .. 
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