बुधवार, 15 जून 2011
शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011
मंगलवार, 5 अप्रैल 2011
रविवार, 27 फ़रवरी 2011
सच पूछिये तो यह राज है गंगा ।
धर्म धुरीण धरा पर जो
उनके मुख की यह लाज है गंगा ।
वायु हिलोर भरे जब भूमि पे
लागे वहीं यह साज है गंगा ।
भारत भारत है सच में
यह भारत का सिरताज है गंगा ।
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पाप परात दिखात सदा
बस नाम के लेन से पावनि गंगा ।
भोले भभूत रमा विहँसे
लखि के मन से मनभावनी गंगा ।
रोज करे अभिषेक धरा का
लगे नित ही यह सावनि गंगा ।
हाड़ पड़े जिनके तन के
उनको सुरधाम पठावनि गंगा ।
शनिवार, 26 फ़रवरी 2011
शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011
गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011
दूर करें सब विघ्न गणेशजी
ध्यान तुम्हीं दिलावावो हे गंगा ।
प्रेरणा के संग काव्य में शक्ति दो
छंद मुझे लिखवावो हे गंगा ।
मानव जीवन सार्थक मुक्ति हो
मार्ग मुझे वो दिखावो हे गंगा ।
लोकोपकार की बात करूँ अस
पुण्य का फूल खिलावो हे गंगा ॥
* * *
मातु पिता कुल तार सकूँ तुम
ऎसी मुझे अभिव्यक्ति दे गंगा ।
भावमयी सद्भाव की भूमि दो
भूलूं नहीं वह भक्ति दे गंगा ।
भारत वर्ष में जन्म हूँ पाया तो
भारत में अनुरक्ति दे गंगा ।
अर्थ हो धर्म हो काम हो मोक्ष हो
सर्व समर्थ हों शक्ति दे गंगा ॥
गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011
नाम तिहारो असंख्य अनंत
कहो किस भांति गिनाऊंगा गंगा ।
है इतना ही जो याद मुझे
उसको दोहरा के सुनाऊंगा गंगा ।
जो मुझको विसरा तुम दी तो
बताओ कहाँ फिर जाऊंगा गंगा ।
दूर रहूँ मजबूर रहूँ हर
हाल में मातु बुलाऊंगा गंगा ॥
* * *
पाप करूँ मैं न दूर से देखूं भी
पाप से मोहे विरक्ति दे गंगा ।
ताप हरूं सभी दीन जनों के
करूँ उपकार वो भक्ति दे गंगा ।
आप में भूला नहीं रहूँ , राष्ट्र के
काज करूँ अनुरक्ति दे गंगा ।
बाप औ मई सुने सुरधाम से
काव्य के छंद में शक्ति दे गंगा ॥
बुधवार, 2 फ़रवरी 2011
नाम तुम्हारा अनेक शिवा ,
शिवदा, कहता कोई वारिणि गंगा ।
धाम तुम्हारा किनारा लगे , तुम
ताप मिटाती हो तारिणि गंगा ।
वाम कभी ग्रहगोचर हों तो
कुभाव की हो तुम हारिणि गंगा ।
काज बने जन , जीव या जंतु के ,
कारक हो तुम कारिणि गंगा ॥
शास्त्र पुराण सभी कहते
तुम धर्म हो , धर्म कपाट हो गंगा ।
साधना तो कभी मैंने किया नहीं
पापों की तू बस काट हो गंगा ।
आतमा त्यागे कभी यह चोला तो
आँखों में विष्णु विराट हो गंगा ।
एक निवेदन है तुमसे बस
तेरी ही गोद हो घाट हो गंगा ॥
मानव योनि मिले जो कभी
मतिमान बनूँ कविता संग गंगा ।
ब्राह्मण के घर आऊं कभी
विद्वान बनूँ पविता संग गंगा ।
भाग्य की लेख खडी हो लिखाना
तुम्हीं बनना भविता मम गंगा ।
जीवन साथी जो देना तो देना
मुझे फिर से सविता संग गंगा ॥
शुक्रवार, 28 जनवरी 2011
मंगलवार, 25 जनवरी 2011
शुक्रवार, 21 जनवरी 2011
मातु तुम्हारी अनेक कथा
कहता कोई शैलसुता तुम्हें गंगा ।
ब्रह्मकुमारी , सुकृष्णसुता
कोई भागीरथी दुहिता तुम्हें गंगा ।
विष्णुपदी कोई जह्नुजा रूप
कोई सुर की सरिता तुम्हें गंगा ।
राधा श्रीकृष्ण कपोल के स्वेद से
जायी हुई कविता तुम्हें गंगा ॥
भक्तिमयी , शिवशक्तिमयी ,
अनुरक्तिमयी , जलधारिणी गंगा ।
योग प्रकाशिनि, रोग विनाशिनी ,
भावमयी , जगतारिणि गंगा ।
स्वर्ग विभासिनी हो कलुनाशिनी
.शंकर शीश विहारिणि गंगा ।
ध्यान से गान से पान नहान से
सर्वदा ही सुखकारिणि गंगा ॥